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धूप की क़िस्मेंछोटा सा बलमा मोरे</div>
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रचनाकार: [[राधावल्लभ त्रिपाठीकांतिमोहन ’सोज़’]]
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<div style="border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; line-height: 0; margin: 0 auto; min-height: 590px; padding: 20px 20px 20px 20px; white-space: pre;"><div style="float:left; padding:0 25px 0 0">[[चित्र:Kk-poem-border-1.png|link=]]</div>
धूप की कई क़िस्में होती हैंछोटा सा बलमा मोरेगुनगुनी धूपगुलाबी धूपनम धूपतीखी धूपबदन सहलाती मुलायम धूपआँगना में गिल्ली खेले I
धूप के कई रंग होते हैंपनिया भरन जाऊँ वो कहेसुनहरी धूपमोहे गोदी ले ले Iहल्दी के रंग की पीली धूपछोटा सा बलमा मोरेपेड़ों से छन कर आती हरी धूपआँगना में गिल्ली खेले II
सबसे अच्छी धूप --गोदी उठाऊँ तो वोहाड़ कँपाता जाड़ा झेलतेयूँ कहे मोहे ले चल मेले Iग़रीब का तनछोटा सा बलमा मोरेगरमाने के लिएआँगना में गिल्ली खेले ।।घने कोहरे को भेद करबाहर आने मेले ले जाऊँ तोजुल्मी कहे कहीं चल अकेले Iछोटा सा बलमा मोरेआँगना में गिल्ली खेले ।। कैसे बताऊँ मेरीजान को आकुल धूप...हैं सौ झमेले Iछोटा सा बलमा मोरेआँगना में गिल्ली खेले ।।
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