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खुली आँखों में / परवीन शाकिर

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[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>खुली आँखों में सपना जागता है<br>वो सोया है के कुछ कुछ जागता है<br><br>
तेरी चाहत के भीगे जंगलों में<br>मेरा तन मोर बन के नाचता है<br><br>
मुझे हर कैफ़ियत में क्यों न समझे<br>वो मेरे सब हवाले जानता है<br><br>
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल<br>बहाने से मुझे भी टालता है<br><br>
सड़क को छोड़ कर चलना पड़ेगा<br>के मेरे घर का कच्चा रास्ता है<br><br/poem>
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