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फुटकर शेर / कांतिमोहन 'सोज़'
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08:23, 29 दिसम्बर 2014
<poem>
1.
क
एक
अजब
ख्वाब
ख़्वाब
में एक उम्र गुज़ारी हमने
सर पे हर शख्स के पापोश थे दस्तार न थे ।
ईंट गारे में मुझे सारी उमर क़ैद रखा
अनिल जनविजय
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