हिन्दी भी हमने हिन्दी में काम कर-कर के ही सीखी है और अभी भी सीख रहे हैं। हिन्दी-सर्वज्ञ तो हम अभी भी नहीं बने हैं। ग़लतियाँ सबसे होती हैं। बहुत से शब्दों को ग़लत ढंग से लिखने की हम लोगों को आदत पड़ गई है। वह आदत धीरे-धीरे ही छूटेगी। यह भी हो सकता है कि न छूटे। आप हमारी ग़लतियों की तरफ़, हमारे अज्ञान की तरफ़ इंगित करते हैं, हम सभी सदस्य इसके लिए आपके प्रति हमेशा हृदय से आभार व्यक्त करते हैं। लेकिन भाई सुमित जी, किसी सदस्य के प्रति आगे से अशिष्ट और भौंडी भाषा का उपयोग आप नहीं करेंगे, इतनी आशा तो हम भी आपसे कर ही सकते हैं। आशा है, आप मेरी इन बातों का बुरा नहीं मानेंगे। आपका पत्र पढ़कर मेरे मन में जो विचार तत्काल आए हैं, उनसे आपको अवगत करवाना भी मैं अपना कर्त्तव्य समझता था, बस इसीलिए इतना-कुछ लिख गया हूँ। आप स्वस्थ-प्रसन्न होंगे। हार्दिक मंगलकामनाओं के साथ...।
सादर
'''--[[सदस्य:अनिल जनविजय|अनिल जनविजय]] १०२०:३०, १३ अप्रैल २००८ (UTC)''''