आदरणीय सुमित जी, नमस्कार, देर से उत्तर देने के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ।
१) आपका नाम "कुछ करिए!" पन्ने पर क्यों जोड़ा गया: कविता कोश टीम अपनी साप्ताहिक सभा में कोश के लिये योजनाएँ तय करती है और ऐसे कई काम किये जाते हैं जिनके पीछे के कारण बाकि लोगो को उतने सीधे-सीधे स्पष्ट नहीं होते। कविता कोश में योगदानकर्ता बहुत कम हैं -लेकिन जितने भी हैं उनमें से आपका योगदान हालहि में उल्लेखीय रहा है। चाहे आपने २ बदलाव किये हों (कविता कोश में योगदान बदलावों की संख्या से मापा जाता है) -लेकिन यदि बाकि लोगो ने २ बदलाव भी नहीं किये हों तो आपका योगदान उल्लेखनीय अपने आप हो जाता है। आप विनम्र हैं -इसीलिये अपना नाम इस पन्ने से हटाने के लिये आपने कहा है। लेकिन यह नहीं किया जा सकेगा क्योंकि इसके पीछे कुछ योजनागत कारण हैं।
२) यह तो काफ़ी समय पहले स्पष्ट हो चुका है कि आपका भाषा ज्ञान काफ़ी अच्छा है और मेरे भाषा ज्ञान से तो कहीं बेहतर है। मेरा भाषा ज्ञान वाकई बहुत खराब है। इसीलिये मुझसे बहुत ग़लतियाँ होती हैं। आशा है कि आप हमेशा कि तरह इन ग़लतियो की ओर इंगित कर कोश को बेहतर बनाने में हमारी सहायता करते रहेंगे।
३) मैं अनिल जी और प्रतिष्ठा की बात से सहमत हूँ। शब्द ऐसे लिखे जाने चाहिये जिससे कि वही अर्थ प्रेषित हो जो कि लिखने वाला प्रेषित करना चाहता है। आशा है कि आप मेरे वार्ता पन्ने पर लिखे अपने शब्द बदल लेंगे ताकि आगे और किसी को वही ग़लतफ़हमी न हो जो हम सभी कि हुई है।
४) चंद्रबिन्दुओं को बदलने के बारे में आप जिस नीति के बारे में सोच रहे हैं -उसके बारे में हमें बताइये... यदि आपकी नीति / योजना टीम को सही लगी तो इस पर ज़रूर अमल किया जाएगा।
सादर
'''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] २१:२३, १५ अप्रैल २००८ (UTC)'''
प्रिय सुमित जी,
मैंने आपको जो सम्बोधन किया था, उस पर आपकी सफ़ाई पढ़ी। मेरा यह मानना है कि जब आप कुछ कहते या लिखते हैं तो आपकी भाषा इतनी स्पष्ट होनी चाहिए कि कोई दूसरा अर्थ उन शब्दों का न निकले । हिन्दी में 'वो' सर्वनाम किसी एक व्यक्ति के लिए प्रयोग में आता है और यह 'वह' का बिगड़ा हुआ रूप है जो बोलचाल में ही