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सुनो बुढ़िया / आयुष झा आस्तीक
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11:56, 13 जनवरी 2015
छान कर रख सकती थी
तुम उनमे से भी उम्मीदों के
अनगिनत चंन्द्रमा
.
..
गर धैर्य के अंबर में तुमने
मेरी स्मृतियों को पसारा होता...
वही का वही
मेरी जीभ और तेरी साँसे
चासनी आज भी वही का वही
.
..
प्रेम के रंग को भी
बदलने से रोका हमने...
Sharda suman
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