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सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria

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/* चंद्र बिंदु */
[[सदस्य:Pratishtha|प्रतिष्ठा]] १३:४२, १४ अप्रैल २००८ (UTC)
प्रिया प्रिय सुमित,
आपको ऐसा क्यों लगता है की "कुछ करिए" में आपकी फालतू फ़ालतू तारीफ़ है| आपने कार्य तो किया है| और प्रूफ़-रीडिंग भी की है| चाहे वो ख़ुद के जोड़े पन्नों की ही हो|
जहाँ तक मेरी बात है, भाषा का ज्ञान मुझे अधिक नहीं है| अपने तुच्छ ज्ञान के साथ मैं कुछ कार्य कराती करती हूँ तो प्रयास यही होता है कि "नहीं कराने करने से तो अच्छा है कि जितना मैं कर सकती हूँ उतना तो करूँ|" मैं आपकी तरह तीव्र नहीं हूँ, मुझे भाषा सीखने मैं में समय लगता है, किंतु कोशिश करुँगी कि आगे से कोई गलती ग़लती न हो|
सादर,
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