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माटी / कन्हैया लाल सेठिया

446 bytes added, 11:30, 21 जनवरी 2015
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|रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |अनुवादक=|संग्रह=दीठ मायड़ रो हेलो / कन्हैया लाल सेठिया
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{{KKCatKavita‎}}<Poempoem>कोनीसोनो, चांदी, हीरा, पन्ना फकत मर्योड़ी माटी स्यूं!आं रै लारै फिरै भागतोमिनख हुयोड़ो गैलो,नाख देख ल्यो बीज, कदेई-मोटी कोई साचआं में नहीं उगैलो,
सगलासंजीवण स्यूं हीण, भरै क्यूंततदेखादेखी छाटी ?माटी जका ठगोरा रै पाणझूठ्यांईसतआं रो मोल बधायो,एक धूळ री मुट्ठी रो हैआं स्यूं मान सवायो,चालै जिण रै संवेदन स्यूंसिसटी री परिपाटी!आंख थकां थे आंधा बण क्यूंथां रो भरम गमावो! थे माटी रा जायोड़ा होमाटी रा गुण गावो,
नही‘सआ परतख परमेसर देखोकुण अणभूतैबां रो हूणों ?निरथक होसूरज रो तपणोआभै रो धूणो ! कोनी लादतोचिड़कली पून नैकठेई आळो,किंयां टिकताबिन्यां पींदैसमदर‘र हियांलो ? बणगी माटी सिसटी रो काच,कोनी माटी स्यूंमोटी कोई साच खोल हियै री पाटी !</Poempoem>
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