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|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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<poem>
म्हारै हियै जियै रै
आसै पासै
भणभाणवै
म्हारा सुपना
म्हारी इच्छावां
म्हारी आख्यां रै
पाणी में तिरता सुपना
कदे डुब जावै
कदे तिरता दीसै।
इसा सुपना
जका
काळ रै तावड़ै सूं
वरदरंग हुयोड़ै
कपड़ै ज्यूं
काळजियै में
उठण आळी
काळी पीळी आंधी में
फगत लैरावै
उड नीं सकै
तणीं सूं
बंध्योड़ा हुवण रै कारण।
नैणां रौ पाणी
बैंवतो बैंवतो
कदे न कदे तो सुखै ई’ज
अर सुपना हुय जावै
बूसीज’र भेळा
सूखो खेलरौ
बण्योड़ा सुपना ने
कदे न कदे
उडा’र ले जावै
तेज पुन रौ लेरको
आपरै सागै
ना जाणै कठै
किण ठौड़?
</poem>
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