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|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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<poem>
कदे कदे
तू लागै है म्हनै
बीज गणित रै
किणी उलझ्योड़ै
सवाल री भांत
जिण ने म्हैं
घणी ताळ सूं कर रह्यौ हूँ
सुळझावण री कोषिष।
कदे कदे
तू लागै है म्हनै
किणी अणजाणी भासा रै
एक सबद री भांत
अर म्है सुनसान
अर सरणाट पुस्तकालय में
किताब्यां रै ढेर में बैठ्यौ
सोध रह्यौ हूँ थारो अरथ।
कदे कदे
तू लागै है म्हनै
एक उफणतै समदर री
एक लैर री भांत
अर म्हैं एक किनारौ
कणै तू म्हारै
घणौ नैड़ौ
कणै ई खासौ दूर।
</poem>