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11:01, 26 फ़रवरी 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=वासु आचार्य
|संग्रह=सूको ताळ / वासु आचार्य
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<poem>
छींट छींट हुयग्या
बै सिगळै
रंग बिरंगा-रंगा रा
चितराम
जका म्हारै मन रै
मान सरोवर
लै‘रा‘वता हा-लै‘र लै‘र
हंस बण
अबै नी तो रैयौ है
मन मांय-मान सरोवर
अर नीं ई हंस
जद सूं हंसा उड़ग्या-
कागा चींथै है-
जीवतै जागतै मुड़दै नै
मांय रा मांय
म्है ताकू निजर पसार
हाथ ऊंचा कर
सिगळौ अकास
कठै‘ई कोई खूणै
दीख जावै-झबकै थारौ मुळकणौ
आ म्हारी लालसा-जाणू हूं-
लालसा‘ई है जी री
ओ म्हारो बगत-बगत नंी
खाली लालसा‘ई है-
थारै पछै
थारै पछै
</poem>
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