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थारै पछै (8) / वासु आचार्य

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<poem>
रात रै - अबोला पळां मांय
साच हो -
जको थारो साथ

खाली आधा अधूरा सुपना
अर यादगार रो सैचन्नण
हुय रैयग्यौ है
जकै रो
नीं तो कोई अकार है
अर नीं ई कोई अवाज

गूंग-म्हारै मांय
छायगी है जकी
सबदां रै
कस्तीवाड़ै सूं नीं है
उण रै आधै अधूरै
निसरतै अरथ सूं है

जिणरो सुवाद लैवणो‘ इज
रैयग्यौ है अरथ

थारै पछै
था..रै...पछै
</poem>
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