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|रचनाकार=वासु आचार्य
|संग्रह=सूको ताळ / वासु आचार्य
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<poem>
घणै कुरैदणै सूं भी
नी मिलै‘बा ठौड़

संवैदणा रै
अनुभव जगत मांय
छाती ठोक‘र
की कैईज सकै
या फैर मुळकतै मुळकतै
हर छिन्न नै सैईज सकै

सिगळी री सिगळी जमीन
अर आभो
भैळो हुय जावै है
हौळे हौळै चालती के‘ई लै‘र ज्यूं

अर बोई छिन्न
क्यूं फैर-फूटणो चावै
कैई ज्वालामुखी दांई
आग‘ई आग
लावौ‘ई लावौ
कादौ‘ई कादौ

आखर-साच क्या है ?

ठंडी मधरी
हौळै-हौळै चालती लै‘र
या उबळतौ लावौ
म्हैं-दौनू‘ई दसावां मांय
न्हांसण लागू
हांफतौ हांफतौ
परसीणौ परसीणौ हुयौ

चावूं-धूड़ रै कण दांई
पून मांय उड़णौ
सब सूं अळगौ
सबसूं न्यारौ हळकौ फुदक हुय
कैई अवळिये ज्यूं

पण अैड़ौ कीं नीं हुवै

म्हैं खुद सूं‘ई
तिसळण लागू
आय पडू-पाछौ
सागी डांडा सागी कवाड़ां री चकरी मांय

म्हैं - नीं हुय सकू अवाळियौ
</poem>
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