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11:02, 26 फ़रवरी 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=वासु आचार्य
|संग्रह=सूको ताळ / वासु आचार्य
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<poem>
डील मांय डील
बदळै है डील
अर आखिरी बदळाव मांय
मर जावै - डील
फैर - तू
तू डील रो सिरजक
बी रै बदळाव रो
सौ टका जिमैदार
बीनै खाख करणियौ
कद कद
अर कित्ती कित्ती बार
बदळै है ?
जाणूं हूं - म्हैं
तू-तू नीं बदळै
तू जाणै है चौखीतरां
बदळण खातर
मरणौ पड़ै
तू थरपीज्यौड़ौ
पत्थर री चट्टाण ज्यूं
अणादिकाल सूं
अर अठै‘ई ज आय‘र तो
फैर मात खाय जावै तू
क म्हैं अेक डील
जिको बदळै भी है
मरै भी है
पण है चलायमान
चालतौ रैवै जिको
लगौलग-पाणी रै
अणथक बैवाव ज्यूं
अर तू
तू खाली मसळतौ रै जावै हाथ
म्हारा सिरजक
</poem>
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