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11:12, 26 फ़रवरी 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=वासु आचार्य
|संग्रह=सूको ताळ / वासु आचार्य
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सै‘र रा चौक
सै‘र रा मौहल्ला-गळ्यां
अबै आपरी
पिछाण सूं‘ई
डरण लागग्या है
लोग पाटा माथै
बैठै भी है
गुरबत भी करै
हंसी ठठ्ठा भी
पण बदळतै बगत री
बदळती पून
अर नूंवी दीठरी नकली खौळ
भरती जाय रै‘ई है
अणदीठ अंमूजो
जियां जिया कुवां रो
कस्तीवाड़ौ हुयौ
तियां तियां ई पाणी जैड़ौ पाणी
अर तैज-खौवता जाय रैया चै‘रा
मिसरी रै कुंजा ज्यूं
हियै री मिठास
चावळ री कणी रळायै
बैसुवादै भुजियां ज्यूं
खिण्डतो जाय रैयौ है
मांय रो मांय
दीखण मांय तो
कीं नीं दीखै
पण लुकण मांय भी
कीं नीं लुकै
खरै अर खारैपण मांय
नामी गिरामी
बैजोड़ हो जकौ सै‘र
ठौड़ ठौड़ कार्यां लागी
चास्णी चढ्यौड़ी भासा
बौलण लाग्यौ-म्हारौ सै‘र
आपरी थाळी बचावण
दूजां री रसौया तक
खुदवावण मांय
पीतळ माथै झोळ चाढ़
सोनो बणावण मांय
दीठ रो फैलाव अबै
जाणण लाग्यौ-म्हारौ सै‘र
क्या - ईयां ई बणै है
छोटे सूं मोटो सै‘र
जद‘ई तो
म्हारै सै‘र रा धौरां
लारलै लाम्बै बगत सूं
धंसण लाग रैया है
जमीन मांय - मांय रा मांय
अबोला चुपचाप
जद‘ई तो जाळ रा जाळियां
खैजड़ां रै खौखा मांय नीं रैयौ बौ मिठास
कीकर भी झुकाया नसड़ी
आकड़ा सागै-लागै घणा उदास
हे ! लिखमी रा नाथ
कुण लगाई चाख
थारै सै‘र नै
</poem>
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