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सूको ताळ.. / वासु आचार्य

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<poem>
नीं आवै अबै अठीनै
कोई नीं आवै
जदकी पैला सैंग
घालता था बाथ्यां
मारता था गंठा
नीं थकता डुबक्या लगावता
ठैठ तळै तांई

पण अबै बो
आपरै सूनै घाटा सागै
सूनी आंख्यां सूं
ताकतो रैवै सूनौ आभो

तिड़क्योड़ी पापड्या-ठौड़-ठौड़
अर पीळौ जरद सरीर

अेक मसाणी सरणाटो
लुकायौ सीनै मांय
सूको पड़यौ है ताळ

लारलै कैई बरसां सूं-बो
भूल‘ई ग्यौ है - हरहरावणौ
लै‘रावणौ-थिरकरणौ
आसै पासै रा
उदास नीमड़ा खेजड़ा
अर बां माथै चैचावतां पखैरू
नीं ठा कठैई आया गया हुयग्या

नीं आवै अबै अठीनै
कोई नीं आवै
नीं गाय नीं बछिया
नीं मौरिया नी ढैळण्या
नीं कोई आदमी रो जायौ
गूंदिया निम्बौळया जाळिया
कैर या खौखा बदळग्या है
बिखर्यौड़ा अठी उठी
जिनावरां रै
हाडकां रै टुकड़ां मांय

नीं ठा कुण फैलाय दी
अेक काळी लालर

बी रै हुवणै नै ई
डस लियौ है
काळ रै काळे नाग

सूकै ताळ रै सागै
सौ की सूकग्यौ है
आखर
सबद अर
भासा भी
कद लै‘रासी-सूको ताळ-पाछौ
अर म्हैं भी ?
</poem>
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