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बरसाती नदी / वासु आचार्य

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<poem>
नीं ठा
कद सू कद तांई
चालसी ओ ढाळौ
क घणखरी हुय‘र भी
कीं नीं रै

अर आपरै हुवणै री औळ्यूं मांय
भरती रै डुसका

आपरै फैलाव मांय
भैळी भैळी बिनाबरखा रै
कैई घर सूं काढ्यौड़ी लुगाई ज्यूं
अणमणी उदास
धंसती जावै मांय री मांय
लुकावणौ चावै गरीबी मांय
आपरो अंग अंग

ओ कैड़ौ नागौपण है ?
क म्हैं चावतां थकां भी
नीं दै सक्यौ
तनै कोई गाभो
घणी दुखी छाती सूं चैप्या
कड़ै बगत रा कड़ा काकरा भाटा
आपरा घाव लियौड़ी
अलौप हुवणौ चावैं
म्हा आंख्यां सूं

पण भर जावै
म्हांरी मांय सिगळी री सिगळी
बा बरसाती नदी

हर हरावणै री लै‘रावणै री
बिरखा री उडीक मांय
</poem>
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