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05:15, 27 फ़रवरी 2015 {{KKGlobal}}
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आत्मा री
अदालत मांय खड्यौ
नसड़ी झुकायो
कैई लूंठै अपराधी ज्यूं
बींधीजतौ रैऊ
रात अर दिन
सूळा ज्यूं तीखै सवाला सूं
जिणरो नीं है
कोई पडूत्तर
म्हैं जठै नीं चाऊ रैवणो
अेक पळ भी
मनै ठा है चौखी तरां
क काटणी है बठै‘ई
कूड़ी आसा
अर भरम रो लबादो औढ़
सिगळी जिन्दगी
नीं ठा क्यूं
जठै जठै सूं
मिल सकै है
सुख स्यान्ति
बै सिगळी ठौड़ां सूं
भागणौ चाऊ-अेकीदम
बागबगीचा मांय
हंसता खिलता बातां करता
दौब मांय पसरता लोगा नै देख
म्हारै चै‘रै छाय जावै काळासी
मिन्दरां री घंट्यां
झालरा रा झरणाटा
नगाड़ा री गूंज
आरत्यां इस्तुत्यां
भर जावै
रूं रूं उदासी
गूंजती अवाजां
ऊचै सुरां मांय बौल्यौड़ा
बैसुरा उपदेस
थौथै आदरसां रै जाळै मांय
मरतै तड़पतै कैई माछर ज्यूं
आखिरी हिचकी लैवता सबद
पीवण लागै
म्हारै काळजै सूं
रगत रो अेक अेक टीपो
म्हैं झोबाझौब हुयो
न्हांसणौ चाऊ
दूर...घणौ...दूर....कैई रिंधरोई मांय
म्हैं खुद‘ई
नीं जाण रैयौ हूं
क म्हारै सागै
या म्हांसू खुद सू‘ई
हुय रैई है-कठैई
कोई घात-बिस्वास घात
अमूजो‘ई अमूजो
च्यारूमैर
म्हैं अणजाण ज्यूं
सैंगमैंग हुयौ ताकू हूं
म्हारो‘ई
चै‘रौ दरपण मांय
</poem>
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