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05:18, 27 फ़रवरी 2015 {{KKGlobal}}
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धिन धिन कैवायग्या
बै आखर
जकां आखर
आखर सूं जुड़
बणग्या सबद
बिखैर दी
पुसबां री मैहक
लबालब रूं रूं तांई
सैंचन्नण हुयग्यौ
अणमणौ अबोलो
मन अकास सिरजण रो
मनै घणौ गीरबो है
बी आखरां
बी सबदां माथै
जका फड़फड़ार उड़ग्या
कोई चिकड़कली
कोई कबूतर बण
जका रचाव रै आंगण
गूंजायग्या चैंचाट री
मधरी मधरी धुन
जकां हरहरा‘र बैयग्या
कोई लै‘र
कोई तरंग बण
मथग्या हियै जियै रो
पूरो रो पूरो समंद
पण कीं करू
म्हारै दौलड़ै जी री बणगट रो
नीं ठा क्यूं
घणां याद आवतां रै
मनै बै आखर
जका नीं तो
फड़फड़ा‘र उड़ सक्या
जका नी‘ई
हरहरा‘र बैय सक्या
नी‘ई लै‘राय सक्या कंगूरा बण
अर नी‘ई कर सक्या सैचन्नण
जका दब‘र रैयग्या
नींव रै हैठै
अणगढ़ बिना अकार लियौड़ा
भाटा ज्यूं
अबोला चुपचाप
म्हैं निमन करूं-थानै
थारै उछाव नै
थै‘ई तो हा
म्हारै काळजै री कोर
जका दैयग्या-नूवौ सिरजण
नूवौ अकार
आपरै हुवणै नै‘ई मिटा‘र
म्हैं निमन करूं थांनै
</poem>
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