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05:20, 27 फ़रवरी 2015 {{KKGlobal}}
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चावू तो घणों‘ई हूँ
क दीठाव-दीठ सूूं उतर
बैठ जाय-मन मांय
दैखलू-जणै चावू
पण नीं हुवै इया
दीठ मांय हड़बड़ी है
अर मन बादळां री घमरौळ
गयौ फैरू बगीचै-चैंचावै
चकचक करै है पखैरू
सौनलिया किरणां मांय न्हावता
पेड़ा रा पत्ता-पून रै लैरका सागै
लै‘र लै‘र लैरावता
जाणै झुकावै माथौ
ऊगतै सूरज नै
पगैलागणां करता थका
इस्कूलां मांय छुट्या है
गरमी री
टाबर खैल रैया है
‘सतौलियो’ ‘धाड़ धुकड़ कबड्डी’
जवान करै कसरत
अर डोकरा
पौपला मूंडा सूं कीरतन
म्हैं बी पत्थर री चौकी माथै
बैठ्यो-दैख रै यौ सौ की
जठै बैठ्या करतो हो-तू भी
नी ठा क्यूं -
तू बगीचै मांय-
नीं हुवतां थका भी-
लागै है-अठै कठै‘ई है
बो नीम-बी रा हरहरावता पत्ता
सौ की-तो है
बस....
तन्नै दांतुण खातर
नीम तोड़णौ नीं सुवावतौ हो-
म्हैं आजकालै
बी री कोई डाल नीं तोडू
बी रै हाथ भी नीं लगाऊं
नीं ठा क्यूं-गलौ भारी
अर आंख्यां गीली हुयगी
मिन्दर मांय
आरती हुवण लागगी है
गूंजण लागग्या है झालर नगारा
म्हैं आज-मिन्दर नी गयौ
नसडी झुकायौ
मुड़ग्यौ पाछौ
</poem>
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