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म्हैं कालै-फैर गयौ
म्हारैं ई मांय
तिरण लागग्यो-

घणौ‘ई कियो जतन
काढ़ लाऊ-बै आखर
जका-लौऊझाण
आत्मा री पीड़ उकैर दे
जकां सूं मिलै
मनै गैरी ठंडक
अर म्हैं आय जाऊ
पाछौ म्हारै-आपै मांय

पण म्हारो सौ जतन
गयौ अकै कारो
गुचळका खावण लागग्यौ
अर घुटण लागगी-म्हारी सांसा

फैर हड़बड़ा‘र पाछौ बा रै आयो
तैजहीण-गीलै पीण्डै ज्यूं
गुडकण लागग्यौ
अर बी घड़ी-सांमी
पेड़ माथै-कोई पखैरू रो जोड़ौ
फड़फड़ा‘र उतर्यौ आभै सूं
आपरै घौसळै मांय
पूरो पेड़-गूँजण लागग्यौ
आपरै अनोखे संगीत सूं-

मुरझाया पत्ता-
चमकण लागग्या
हराटांस हुय‘र

अेक पळको सौ हुयौ
म्हारै रू रू
अर बापरगी अेक गैरी ठंडक
मिळी अेक उण्डी थ्यावस
सिरजण री पीड़ री
सिरजण रै सुख री
</poem>
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