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जीवन / अज्ञेय
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04:02, 17 मार्च 2008
प्रूफ़रीड किया है
मानो धरे लकीर
जमे
खारे
झागों
की--
की—
रिरियाता कुत्ता यह
पूँछ लड़खड़ाती
टाँगों
टांगों
के बीच
दबाये ।
दबाये।
दुर्गम, निर्मम, अन्तहीन
उस ठण्डे पारावार से !
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Sumitkumar kataria