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जीवन / अज्ञेय
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04:23, 17 मार्च 2008
}}
चाबुक
खाये
खाए
भागा जाता
सागर-तीरे
मुँह
लटकाये
लटकाए
मानो धरे लकीर
रिरियाता कुत्ता यह
पूँछ लड़खड़ाती टांगों के बीच
दबाये।
दबाए।
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Sumitkumar kataria