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06:18, 30 मार्च 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
}}
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<poem>
छनो भर साथ मिल जाई
हिया के फूल खिल जाई
मिली जब ताप आँसू के
पहाड़ो तक पिघल जाई
मशक्कत में बड़ा ताकत
हिमालय तक ले हिल जाई
सही, बुजदिल कबो कहिहें ?
जुबाँ ओठे में सिल जाई
अगर मन-अश्व अनियंत्रित
तब केहू प दिल जाई
</poem>