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06:19, 30 मार्च 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
}}
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
ई बदरी छाई कबले
सूरूज छिप पाई कबले
लाठी के बल पर केहू
अनकर हक खाई कबले
बनल रही एह धरती पर
पर्वत आ खाई कबले
अपने घर हिन्दी माई
बनल रही दाई कबले
खून सहोदर भाई के
पियत रही भाई कबले
</poem>