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06:30, 30 मार्च 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
}}
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<poem>
युग के वन्दन
नत अभिनन्दन
साँप उहें बा
जहवाँ चन्दन
लोग बढ़त बा
पग-पग क्रन्दन
इज्जत गिरवी
हावी बा धन
कठिन साधना
चंचल जब मन
राम जुबाँ पर
भीतर रावन
कलई लागल
लउके कंचन
</poem>