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07:45, 30 मार्च 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
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<poem>
तू याद-झरोखे आ जा, तब कुछ बात बने
दिल के बगिया में छा जा, तब कुछ बात बने
घिर गइल बदरिया करिया मन के अंगना में
चन्दा बन के मुसुका जा तब कुछ बात बने
पतझर झरले जाता सुख के पतई-पतई
कोइल के कूक सुना जा तक कुछ बात बने
झुलसत बा आसा के बिरवा हरियर-हरियर
मलयाचल पवन बहा जा तब कुछ बात बने
बालू के रेत पर सिसकल कतना सपना
नदिया बन के बल खा जा तब कुछ बात बने
काँटन में फँस के मुरझाइल सुकुमार कली
हौले आ फूल खिला जा तब कुछ बात बने
अब ले आपन दर्द रहल साथी संगी
कोमल हाथे सहला जा तब कुछ बात बने
</poem>