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चित्रकूट (1) / जयशंकर प्रसाद

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निर्मल सर में नील कमल नलिनी हो जैसे
निज प्रियतम के संग सुखी थी कनन कानन में भी
प्रेम भरा था वैदेही के आनन में भी
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