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चित्रकूट (1) / जयशंकर प्रसाद
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02:59, 4 अप्रैल 2015
निर्मल सर में नील कमल नलिनी हो जैसे
निज प्रियतम के संग सुखी थी
कनन
कानन
में भी
प्रेम भरा था वैदेही के आनन में भी
सशुल्क योगदानकर्ता ३
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