Changes

संभूति / प्रवीण काश्‍यप

1,859 bytes added, 07:21, 4 अप्रैल 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रवीण काश्‍यप |संग्रह=विषदंती व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रवीण काश्‍यप
|संग्रह=विषदंती वरमाल कालक रति / प्रवीण काश्‍यप
}}
{{KKCatMaithiliRachna}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कैलासक कोनो शिखर पर बैसि
प्रेम करू अहाँ सँ
वा गंगाक धार में झलकैत
अहाँक रजतमयी
देहलतिका कें निहारू!

भानुक स्वर्ण आभा कें
परावर्तित करैत अहाँक मुक्तावली
कें कोना धारण करू?
कोनो इन्द्रधनुषी विक्षेप
हमर आँखिक तेज कें
तिरोहित कयने जाइत अछि।

भाँग में कहाँ छैक
आब ओ आलस्य
जे हमरा योगनिद्रा दऽ सकै!
कहाँ नागमे छैक
आब ओ शीतलता
हे हमर कंठ में टँगल
विषक प्रवाह कें रोकि सकै!

हे प्रिया!
आब एकमात्र अहीं कें
अपन जंघा पर बैसा कऽ
हम भऽ सकै छी योगी!
अहीं अपन पुष्पलता सन
बाँहि सँ गऽड़ लागि कऽ
चिरकाल सँ विषक ताप मे
सुन्न भेल, जड़ल कंठ सँ
बोल बहार कऽ सकै’ छी!
आब अहींक गुहामे
समाधिस्थ भऽ कऽ
हमा संभूति पाबि सकै’ छी
जीवन पाबि सकै’ छी!
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
2,887
edits