Changes

भोगी / प्रवीण काश्‍यप

1,068 bytes added, 07:58, 4 अप्रैल 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रवीण काश्‍यप |संग्रह=विषदंती व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रवीण काश्‍यप
|संग्रह=विषदंती वरमाल कालक रति / प्रवीण काश्‍यप
}}
{{KKCatMaithiliRachna}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
हम थिकहुँ योगी!
सहस्र-दल कमलक मंथन पश्चात
हम पबैत छी अमृत
अमृत मात्र अछि हमर जीवनक केन्द्र!
संबंधक शून्य क्षेत्र
जे नहि अबैत अछि
मर्यादा वा अमर्यादाक परिधि मे
हम एहि दुनूक परिधि सँ छी फराक,
बीचक मानवहीन सीमारेखा पर
हमरहि योग अछि सत्य।
हम ने छी सन्यासी ने गृहस्थ;
हम छी मात्र योगी
मंथन हमर कर्म,
अमृत हमर जीवन।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
2,887
edits