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08:03, 5 अप्रैल 2015 {{KKRachna
|रचनाकार=श्रीनाथ सिंह
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|संग्रह=
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<poem>
आई दिवाली लाई खिलौने,
रँग बिरँगे लम्बे बौने।
लिपे पुते घर लगे सुहाने,
चलते हैं हम दीप जलाने।
चीजों की भरमार बड़ी है,
सड़क समूची पटी पड़ी है।
लगा दिवाली का है मेला,
हटा अँधेरा फटा उजाला।
दूर दूर तक दीप जले हैं,
दिखते कितने भव्य भले हैं।
बल्ब सजे घर घर इतने हैं,
पेड़ों में पत्ते जितने हैं।
लड़के बने सिपाही बाँके,
शोर बढ़ाते छुड़ा पटाखे।
सीमा पर दुश्मन आयेगा,
इनसे पार नहीं पायेगा।
गीत खुशी के गाते हैं हम,
प्रभु से यही मनाते हैं हम।
चाहे जैसी निशि हो काली,
ज्योतित कर दे उसे दिवाली।
</poem>