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09:20, 5 अप्रैल 2015 {{KKRachna
|रचनाकार=श्रीनाथ सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
आ गई बाढ़ -आ गई बाढ़,
गंगा जी में आ गई बाढ़।
सावन -घन तुमड़ी बजा रहा,
अजगर -नद निज फन रहा काढ़।
वह लील रहा मैदान रेत,
वह लील रहा बन बाग खेत।
वह लील रहा है ग्राम नगर,
बढ़ता आता ज्यों विकट प्रेत।
बह चले मूल से उखड़ पेड़,
बह चलीं फेन के सदृश्य मेड़।
फैला मटमैला जल भू पर,
हैं टूट गए सब बांध मेड़।
बह रहे विविध झंकाड़ झाड़,
चौकियां खाट छप्पर किवाड़।
अनुमान न कोई कर सकता,
बस्तियां हुईं कितनी उजाड़।
दुखियों का हरने कष्ट क्लेश,
तैयार हो गया पूर्ण देश।
धन ,अन्न ,नाव ,औषधि बचाव,
का, सुखी हुये सब, पा सन्देश।
</poem>