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|रचनाकार=श्रीनाथ सिंह
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<poem>
कोई मुझसे बतलाओ रे जंगल में क्या होता है,
कब उठता सो कर वनमानुष और हाथ मुँह धोता है?
मनमाने सब काम वहां हैं जब जी में आये जागो,
अगर सामने दुश्मन आये मार भगाओ या भागो।
हरियाली देती है भोजन ताल पिलाते हैं पानी,
जी चाहे तो कर सकते हो वहाँ रात दिन शैतानी।
चूहे सदा चुरा के खाते पाप न चोरी को कहते,
नहीं अदालत नहीं सिपाही और नहीं राजा रहते।
घने बनों में ताल किनारे बारहसिंघा क्या करता,
निर्जनता में नहीं जरा क्यों भूत प्रेत से वह डरता?
कारण वही बता सकता है जिसने देखा हो जंगल,
मैं तो लिखता हूँ यह कविता दिल बहलाने को केवल।
शेर बलि है बेशक सबसे मार मृगों को खाता है,
सुन कर उसकी विकट गर्जना सब जंगल थर्राता है।
पर वह रहता सदा अकेला मेला नहीं लगाता है,
सेना नहीं खड़ी करता है महल नहीं उठवाता है।
बस्ती में जो बकरी रहती वह सदैव काटी जाती,
पर जंगल की बकरी पर इस तरह नहीं आफत आती।
अगर भेड़िये पीछा करते टीले पर चढ़ जाती वह,
बस्ती से जादा जंगल में अपनी जान बचाती वह।
राजपाट या सड़क नहीं है तोप नहीं तलवार नहीं,
धर्म नहीं कानून नहीं है शहर नहीं व्यापार नहीं।
फिर जंगल में क्या होता है अजी सदा रहती हलचल,
स्काउट बन पहुँचो वन में देखो जंगल का मंगल।
</poem>