अर्द्ध-उन्मीलित नयन{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=घनश्याम चन्द्र गुप्त|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatGeet}}<poem>
अर्द्ध-उन्मीलित नयन, स्वप्निल, प्रहर भर रात रहते
अधर कम्पित, संकुचित, मानो अधूरी बात कहते
अर्द्ध-उन्मीलित नयन, स्वप्निल, प्रहर भर रात रहते
अधर कम्पित, संकुचित, मानो अधूरी बात कहते
-घनश्याम चन्द्र गुप्त</poem>