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17:13, 22 अप्रैल 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नरेश कुमार विकल
|संग्रह=अरिपन / नरेश कुमार विकल
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<poem>
संग रहिकऽ ने अहाँ बजै छी किऐ ?
प्राण वीणा कें तार तोड़ै छी किऐ ?
चान कें हाथ सँ झाँपि सकतै कोना ?
कोनो देखय ने ककरो ई हेतै कोना ?
फूल सन रूप मानी जँ अहाँ अपन-
तऽ कली सन ने सदिखन हँसै छी किऐ ?
मोन रांगल अहाँ जे अपन प्रीत सँ।
छूटि सकतै कोना ई विरह-गीत सँ ?
सांझ एखनो ढरल छै हमर मोन कें
बनिकऽ बाती ने अहाँ जरै छी किऐ ?
पयर जखने रूकल आस आगू बढ़ल
आँखि कें कोर सँ नोर किऐ बहल
लाल मंहफा में पीयर ओहार लगल
हम मनाबी ने अहाँ रूसै छी किऐ ?
</poem>