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हमरा लग रहब / नरेश कुमार विकल

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<poem>
चहुँ दिस चोर घुमै छै रूपक
किदन-किदन छै बाजब।
सबहक मुँह सुनै छी एतबे
की हमरा लग रहब ?

कोनो सोन श्रृंगार सजौने
कोनो फूलक गजरा
एक फूल पर घूमि रहल छै
ने जानि कतेको भमरा।

सभक आँखिक भाषा बाजै
जे कहब अहाँ से करब।
सबहक मुँह सुनै छी एतबे
की हमरा लग रहब ?

कतेक मोन मे पियास भरल
आनन्द आर उल्लास भरल
कतेक साँस उपर मँह खींचै
आँखि कतेकोक गरल।

सभ कें असीम विश्वास हमर
क्या कहय अहीं लग मरब,
सबहक मुँह सुनै छी एतबे
की हमरा लग रहब ?

मोनक आँगन मे आबि रहल छै
ने जानि कतेको नयना,
दुइयेटा लोचन अछि हमरा
कोना कें बाँटब बयना।

की सम्भव छै एक पात्र सँ
कोटि पात्र कें भरब ?
सबहक मुँह सुनै छी एतबे
की हमरा लग रहब ?
</poem>
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