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|रचनाकार=नरेश कुमार विकल
|संग्रह=अरिपन / नरेश कुमार विकल
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<poem>
चान डूबल, आस छूटल
एना मे गीत की गाबी ?
छन्द रूसल, ताल टूटल
एना मे गीत की गाबी ?

मोनक श्रृंगार कयने छी
तनल आकाश केर नीचाँ,
हमर मोनक भाषा केर-
बनत कैकटा ऋचाऽ।

हृदय केर तार सभ टूटल
कहाँ सँ तान हम लाबी ?
छन्द रूसल, ताल टूटल
एना मे गीत की गाबी ?

जरतई देह बिनु आगिक
आँखिक नोर मे डूबत,
आंगन मे इजोरिया संग
ऐपन चान सन ऊगत

सिनुरी सांझ पुनि ऊगल
कोना हम मोन कें दाबी ?
छन्द रूसल, ताल टूटल
एना मे गीत की गाबी ?

तरेगन ताम्र-पत्र परक
उगल दू तीनटा आखर
पिआसल मोन कें भरत
ने कहियो गंग आ सागर।

स्नेहक सीत सभ बरिसल
एना कत दिन जोगाबी ?
छन्द रूसल, ताल टूटल
एना मे गीत की गाबी ?
</poem>
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