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चिड़कल्यां / मुकुट मणिराज
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09:35, 30 अप्रैल 2015
पल में बिगड़ जावै छै/सारा चितराम।
मातम मनावै छै चिड़कल्यां/पण रोबा अर
हांसबा
कां’ा
कांण
यांकै पास कोईनै
नाळी-नाळी भाषा।
म्हनै लागै छै हाल/जुगां तांई न्हं कर सकैगी
कागलां सूं सामनो, नादान भोळी, ये चिड़कल्यां।
</poem>
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