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जात रो भूत / निशान्त

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<poem>
का’ल अेक
जाति-भाई आयो अर
जात री धर्मशाळा बणावण सारू
चन्दो मांगण लाग्यो

म्हैं कैयो -
क्यूं भाई,
बात धर्मशाळा बणावणै तांई तो
ठीक है
पण धर्मशाळा नै
अेक जाति में बांधणी
कठै’ क तांई जायज है

फेर जात आळा
कीं री औड़ी में
आडा आवै ?

बेटी तो जात में
ईंयां ब्यावै कै
गैर जात आळा
नेड़ै कोनी लागण द्यै

ईं बात रौ नजायज
फायदो ई
जाति भाई कीं कम नीं उठावै
पींच’र आगलै रो
पाणी काड ल्यै
फेर साळो फिरो
भला ईं सारी उमर
करज में रपटीजतो

बियां ई म्हारी तो
पितायोड़ी है
जात आळा सूं

म्हनै तो कदै ई
कीं रो सारौ होयो तो
गैर जात आळां सूं होयो

जात आळां तो
ईसकै रा मार्या
पतो नीं क्यूं ?
सारी उमर खून ई पीयो

हो कदे म्हनै ई हो
ओ जात-प्यार रो बै’म
पण जाति भायां रा
लखण देख’र
सो कीं छुटग्यो।
</poem>
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