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10:13, 4 मई 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
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<poem>
ढळती उमर री
कमजोरी दूर करण सारू
बैद-हकीम बतावै
सोनै री भस्म
पण म्हनै लागै
कई दिन/फूलां आयोड़ै
तारैमीरै रै खेत में
बिचरूं तो
सागळी कमजोरी
दूर भाज सकै
पण कठै ’सू ल्याऊँ
इत्तो फक्कड़पणौ।
</poem>
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