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10:24, 4 मई 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
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<poem>
किणीं महापुरूष रा
बचन सुण्या-
दोगाचिंतीं छोड़‘र
निडर हुवण रै
बारै में
पण हुयो नी गयौ
क्यूं कै
म्हनै निगै नीं आयो
दूर-दूर तांई
महापुरूष रै
बचना में
ढळ्योड़ो आदमी।
</poem>
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