789 bytes added,
10:36, 4 मई 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
सींव भाऊं किणीं
देश री हुवै का
प्रदेश री
बीं रै आर-पार
दूर-दूर तांई
कीं नीं हुवै
बदळेड़ो
न तो माटी रो रंग
न पेड़-पौधा
न लोगां रो पै ’राण
न बोली
‘साइन बोर्ड’ नीं टंगेड़ो हुवै तो
कीं ठा नीं पड़ै
फेर सींव मौजद हुवै
सो कीं बांटती ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader