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10:40, 4 मई 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
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<poem>
कई भीखारण्यां रै/चै’रै पर तो
चेळको है
पण बिचलै वर्ग री
बहुवां री
हाडक्यां
निकळ री है
कारण साफ ह।
धूंवै अर
सीलीड़ै सूं भर्योड़ै
चौभींतै मांय
बांनै काम तो है घणों
अर खुराक
पराई जाई नै
पूरी कठै ?
</poem>
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