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10:52, 9 मई 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|अनुवादक=
|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
}}
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<poem>
बाजार हिला राख्या है
इस्या कै
होळी आळै
अेक दिन भी
नीं सरयो बीं बिना
बो भी जाणै हो
म्हारी रग
खुलग्यो
हांडी बगत तांई
घणकरो -सो
</poem>
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