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बाजार (3) / निशान्त

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|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
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<poem>
घर स्यूं निकळ्यो
लेय’र कई काम
पण बंद मिल्यो
सफाखानो
दफ्तर मांय बंद हो
संबंधित बाबूआळो कमरो
हां, बाजार जरूर
खुल्लो हो
जी मांय म्हैं
खरच आयो
कई रिपिया ।
</poem>
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