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फरक.. / निशान्त

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|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
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<poem>
'''अेक'''

कस्बै रै बारलै पासै
ताल मांय
मोमियो कागद ताण्यां
आपरै परिवार साथै सूत्यै
बण मूंडो उघाड़’र
राम-रूमी करी
तो बीं रै चेळकै सांमी
म्हारो पड़ूत्तर
गम’र रैयग्यो ।

'''दो'''

रेड़ीआळै रै
दो-तीन बरियां
कैवण रै बावजूद
बीं नीं चाख्यो
अेक ई बेरियो
बिण तो बीं बाबू स्यूं ई
पूछ लियो
‘खाटा है क मीठा ?’
जको ठोक्यां जावै हो
दबा दब ।
</poem>
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