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प्राची पश्चिम भू नभ अपार;
सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त
वीरों का हो कैसा वसन्तहो वसंत
फूली सरसों ने दिया रंग
वधु वसुधा पुलकित अंग अंग;
है वीर देश में किन्तु कंत
वीरों का हो कैसा वसन्तहो वसंत
भर रही कोकिला इधर तान
है रंग और रण का विधान;
मिलने को आए आदि अंत
वीरों का हो कैसा वसन्तहो वसंत
गलबाहें हों या कृपाण
हो रसविलास या दलितत्राण;
अब यही समस्या है दुरंत
वीरों का हो कैसा वसन्तहो वसंत
कह दे अतीत अब मौन त्याग
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग;
बतला अपने अनुभव अनंत
वीरों का हो कैसा वसन्तहो वसंत
हल्दीघाटी के शिला खण्ड
राणा ताना का कर घमंड;
दो जगा आज स्मृतियां ज्वलंत
वीरों का हो कैसा वसन्तहो वसंत
भूषण अथवा कवि चंद नहीं
है कलम बंधी स्वच्छंद नहीं;
फिर हमें बताए कौन हन्त
वीरों का हो कैसा वसन्तहो वसंत
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