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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कुँअर बेचैन|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatGhazal}}<poem>ये लफ्ज़ लफ़्ज़ आईने हैं मत इन्हें उछाल के चल,अदब की राह मिली है तो देखभाल के चल ।
अदब कहे जो तुझसे उसे सुन, अमल भी कर उस पर,ग़ज़ल की राह मिली बात है तो देखभाल उसको न ऐसे टाल के चल
सभी के काम में आएँगे वक़्त पड़ने पर,
तू अपने सारे तजुर्बे ग़ज़ल में ढाल के चल ।
कहे जो तुझसे उसे सुनमिली है ज़िन्दगी तुझको इसी ही मकसद से, अमल सँभाल खुद को भी कर उस परऔरों को भी सँभाल के चल ।
ग़ज़ल की बात कि उसके दर पे बिना माँगे सब ही मिलता है उसको न ऐसे टाल ,चला है रब कि तरफ़ तो बिना सवाल के चल
अगर ये पाँव में होते तो चल भी सकता था,
ये शूल दिल में चुभे हैं इन्हें निकाल के चल ।
सभी के काम में आएंगे वक्त पड़ने पर तू अपने सारे तजुर्बे ग़ज़ल में ढाल के चल  मिली है ज़िन्दगी तुझको इसी ही मकसद से संभाल खुद को भी औरों को भी संभाल के चल  कि उसके दर पे बिना मांगे सब ही मिलता है चला है रब कि तरफ तो बिना सवाल के चल  अगर ये पांव में होते तो चल भी सकता था ये शूल दिल में चुभे हैं इन्हें निकाल के चल  तुझे भी चाह उजाले कि है, मुझे भी 'कुंअरकुँअर' बुझे चिराग कहीं हों तो उनको बाल के चल</poem>
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