Changes

|रचनाकार=कुँअर बेचैन
}}
{{KKCatNavgeet}}<poem>
दरवाज़े तोड़-तोड़ कर
 
घुस न जाएँ आंधियाँ मकान में,
आँगन की अल्पना सँभालिए ।
आंगन की अल्पना संभालिए।  आई कब आंधियाँ आँधियाँ यहाँ 
बेमौसम शीतकाल में
 
झागदार मेघ उग रहे
 
नर्म धूप के उबाल में
छत से फिर कूदे हैं अँधियारे
चन्द्रमुखी कल्पना स~मभालिए ।
छत से फिर कूदे हैं अंधियारे चंद्रमुखी कल्पना संभालिए।  आंगन आँगन से कक्ष में चली 
शोरमुखी एक खलबली
 
उपवन-सी आस्था हुई
 
पहले से और जंगली
 दीवारों पर टंगी टँगी हुईपँखकटी प्रार्थना सँभालिए ।पंखकटी प्रार्थना संभालिए।</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,803
edits