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{{KKRachna
|रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र |अनुवादक=|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>वाणी की दीनता<br>अपनी मैं चीन्हता !<br><br>
कहने में अर्थ नहीं<br>कहना पर व्यर्थ नहीं<br>मिलती है कहने में<br>एक तल्लीनता !<br><br>
आस पास भूलता हूँ<br>जग भर में झूलता हूँ<br>सिंधु सिन्धु के किनारे जैसे<br>कंकर शिशु बीनता !<br><br>
कंकर निराले नीले<br>लाल सतरंगी पीले<br>शिशु की सजावट अपनी<br>शिशु की प्रवीनता !<br><br>
भीतर की आहट भर<br>सजती है सजावट पर<br>नित्य नया कंकर क्रम<br>क्रम की नवीनता !<br><br>
कंकर को चुनने में<br>वाणी को बुनने में<br>कोई महत्व नहीं<br>कोई नहीं हीनता !<br><br>
केवल स्वभाव है<br>चुनने का चाव है<br>जीने की क्षमता है<br>मरने की क्षीणता !<br><br/poem>
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